पतंजलि का योग जहाँ समाप्त होता है,, वहाँ से गुरु गोरखनाथ जी का योग प्रारम्भ होता है….हरिहर नाथ योगी
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पतंजलि का योग जहाँ समाप्त होता है,,
वहाँ से गुरु गोरखनाथ जी का योग प्रारम्भ होता है….हरिहर नाथ योगी
योग दिवस पर विशेष
पातंजलि योग का मुख्य सूत्र कहता है… योगशिचित्ति वृत्ति निरोधा….
अर्थात योग से चित्त की वृत्तियों का निरोध होता है…
मगर योग सिर्फ यहीं तक नहीं….
योग की असली यात्रा इसके बाद प्रारम्भ होती है….
त्राटक,, त्रिबंध,, (जिसमे एक बंध योगी जालंधर नाथ जी के नाम से है, जालंधर बंध ),, मुद्रा,, महामुद्रा, खेचरी, भूचरी, अगोचरी,, कुंडलिनी जागरण,, ध्यान की पांच अवस्थाएं…..
और अंत में जीव को शिव से मिला देना ही योग का परम् लक्ष्य है….
ये सब गुरु गोरखनाथ जी के योग का ही अंग है,, जिनका पतंजलि योग में कोई उल्लेख नहीं…
यहां तक —योग के आसनो में.. मनुष्य के नाम से दो ही आसन (गोरक्ष आसन एवं मत्स्ययेंद्र आसन )का वर्णन,,उल्लेख है,, जबकि पतंजलि या अन्य कोई भी योग ऋषि के नाम से आज तक कोई आसन ही नहीं बना… न कोई उल्लेख है..
दुर्भाज्ञ है कि आज विश्व,, योग दिवस तो मनाते है, लेकिन इसके मूल प्रणेता गुरु गोरखनाथ जी का कहीं कोई नाम भी नहीं लेता… स्वयं गोरक्षपीठाधिश्वर योगी आदित्यनाथ जी भी कभी योग दिवस पर गुरु गोरखनाथ जी का अपने उद्बोधन में नाम या उल्लेख नहीं करते……