कवर्धा

बिरनमाला (स्वर्णमाला) से हुआ भोरमदेव महोत्सव के सभी अतिथियों का स्वागत और अभिनंदन

उन्होंने बताया कि कोई धार्मिक कार्यक्रम हो या फिर मेला-मड़ई या फिर उत्सव या विवाह, अपने अतिथियों का स्वागत बैगा आदिवासी इसी बिरन माला से करते हैं। नृत्य के अवसर पर बैगा महिलाएं इसे सिर पर भी धारण करती हैं।

बिरनमाला (स्वर्णमाला) से हुआ भोरमदेव महोत्सव के सभी अतिथियों का स्वागत और अभिनंदन

कवर्धा, । भोरमदेव महोत्सव में आए सभी अतिथियों का विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा के विशेष आभूषण बिरनमाला (स्वर्णमाला) से स्वागत और अभिनंदन हुआ। कलेक्टर श्री जनमेजय महोबे ने भोरमदेव महोत्सव में आए सभी अतिथियों का आदिवासी संस्कृति बिरनमाला (स्वर्णमाला) से स्वागत किया। बैगा समाज के श्री इतवारी मछिया ने बताया कि सोने की तरह चमकने वाली यह माला वस्तुतः घास से बनती है। यह बैगा आदिवासियों का एक प्रिय गहना है। जिसे खिरसाली नाम के पेड़ के तने और सुताखंड और मुंजा घास के रेशों से बनाया जाता है। आमतौर पर माला को गूंथने के लिए मुंजा घास का प्रयोग सबसे ज्यादा किया जाता है, क्योंकि यह बहुतायत में होती है। यह अक्टूबर-नवंबर माह में उगती है। पहले खिरसाली के तने को छीलकर समान आकार के छल्ले बनाए जाते हैं। फिर उन्हें गूंथा जाता है फिर हल्दी के घोल में डुबा कर सुखाया जाता है। अन्य प्राकृतिक रंगों में भी इन्हें रंगा जा सकता है। ऐसी एक माला को बनाने में कम से कम तीन दिन लग जाते हैं। पूरा काम बड़े जतन से हाथ से किया जाता है। उन्होंने बताया कि कोई धार्मिक कार्यक्रम हो या फिर मेला-मड़ई या फिर उत्सव या विवाह, अपने अतिथियों का स्वागत बैगा आदिवासी इसी बिरन माला से करते हैं। नृत्य के अवसर पर बैगा महिलाएं इसे सिर पर भी धारण करती हैं।

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