कवर्धादुर्ग

कारगिल विजय दिवस पर पूर्व सैनिकों ने वीर शहीदों को दी श्रद्धांजलि

कारगिल विजय दिवस पर पूर्व सैनिकों ने वीर शहीदों को दी श्रद्धांजलि
कवर्धा,,,,डी एन योगी

कवर्धा,,,प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी हमारे कबीरधाम जिला के पूर्व सैनिक संघ के समस्त लोगों ने आज कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों को श्रद्धा सुमन अर्पित कर नमन् किया।
आज कारगिल युद्ध की 22वीं वर्षगांठ देशभर में मनाई जा रही है। 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को मुंह की खाने के बाद लगातार छेड़े गए छद्म युद्ध के रूप में पाकिस्तान ने ऐसा ही छ्द्म हमला कारगिल में 1999 मे किया गया था । 18 हजार फीट की ऊंचाई पर कारगिल का यह युद्ध तकरीबन दो माह तक चला, जिसमें 527  वीर सैनिकों की शहादत देश को देनी पड़ी। 1300 से ज्यादा सैनिक इस जंग में घायल हुए। पाकिस्तान के लगभग 1000 से 1200 सैनिकों की इस जंग में मौत हुई। भारतीय सेना ने अदम्य साहस से जिस तरह कारगिल युद्ध में दुश्मन को खदेड़ा, उस पर हर देशवासी को गर्व है।
इन्हीं में से कुछ नाम ऐसे भी हैं, जिनकी वीर गाथा आज भी हर प्रदेश वासी की जुबान पर है। कैप्टन विक्रम बत्रा जब पहली जून 1999 को कारगिल युद्ध के लिए गए तो उनके कंधों पर राष्ट्रीय श्रीनगर-लेह मार्ग के बिलकुल ठीक ऊपर महत्वपूर्ण चोटी 5140 को दुश्मन फौज से मुक्त करवाने की जिम्मेदारी थी।
आसान नहीं थी कारगिल की जंग यह दुर्गम क्षेत्र मात्र एक चोटी ही नहीं थी यह तो करोड़ों देशवासियों के सम्मान की चोटी थी जिसे विक्रम बत्रा ने अपनी व अपने साथियों की वीरता के दम पर 20 जून 1999 को लगभग 3 बजकर 30 मिनट पर अपने कब्जे में ले लिया। उनका रेडियो से विजयी उद्घोष *’यह दिल मांगे मोर*….जैसे ही देश वासियों को सुनाई दिया हर एक भारतीय की नसों में ऐसा जज्बा भर गया और हर एक की जुबान भी यह दिल मांगे मोर… ही कह रही थी। 
शहीदों की शहादत की कहानियो में भिलाई इस्पात नगरी के वीर सपूत वीर चक्र शहीद कौशल यादव ऑपरेशन विजय में  25 जुलाई 1999 को भारत-पाक सीमा पर वीरगति  को प्राप्त हुए थे। टीम के सभी सिपाही द्रास सब सेक्टर टाइगर हिल से 4 किलोमीटर आगे सीमा रेखा के पास थे। कौशल ने वहां रो फिक्स किया था।यह रो 200 मीटर की दूरी पर था। इसी बीच उन्हें जानकारी हो चुकी थी कि यहां लगभग 160 की संख्या में दुश्मन मौजूद हैं और वे सिर्फ 25 जांबाज सिपाही है । 25 जुलाई 1999 को सुबह 8 बजे दोनों तरफ  फायरिंग शुरू हो चुकी थी। तभी करीब 10 बजे कौशल और दुश्मनों के बीच आमने-सामने की स्थिति बन गई।
जहां कौशल यादव उनसे भिड़ गए। इसी बीच दुश्मन की एक गोली उनके कंधे पर लगी। कौशल की सांसें उखडऩे लगीं और धनवंता देवी का  लाला (मां प्यार से लाला कहकर पुकारती थी) देश के लिए शहीद हो गया। 
बिलासपुर जिले से संबंध रखने वाले परमवीर चक्र विजेता संजय कुमार की वीर गाथा भी इसी तरह की है,
कारगिल की पहाड़ी टाईगर हील कारगिल का युद्ध इतना कठिन था कि वहां छिपने के लिए खाली व सूखी पहाड़ियों के अलावा कुछ भी नही था इस लड़ाई में दुश्मन सैनिकों के साथ गुत्थमगुथा की इतनी भयानक लड़ाई लड़ी गई द्रास सेक्टर की सबसे मुश्किल और मशहूर चोटी टाईगर हिल्स पर फतह हासिल की।
कारगिल युद्ध की घटनाक्रम आज भी हमे प्रेरित करती हैं तथा हौंसला देती हैं कि हमारा देश आज भी सुरक्षित हाथों में है देश की सेना पर हमें गर्व है
इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से सूबेदार धर्मगुरु घनश्याम प्रसाद साहू सेवानिवृत्त ,वारंट अफसर परमानंद कौशिक सेवानिवृत्त , अब्दुल शईद खान, अब्दुल समीम खान, जितेंद्र कुमार राजपूत, धनेश्वर सिंह राजपूत,छोटे लाल वाकरे, दिनेश चंद्रवंशी , धर्मेन्द्र चन्द्रवंशी दिनेश साहू ,कृष्णकान्त सिंह राजपूत, पार्षद संतोष यादव

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