आज़ादी के सत्तर बरस.. गाँव को नसीब नहीं पुल… झलगी से ढोकर उफनती नदी पार कर पहुँचते हैं तीन किलोमीटर तब मिलती है सड़क
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अंबिकापुर,कबीर क्रांति
अंबिकापुर,, छत्तीसगढ़ के शिमला के रुप में प्रचारित किए जाने वाले मैनपाट में यह यक्ष प्रश्न है कि आख़िर जब जंगल की जगह मैदान और ठूंठ ने ले ली है, और मैनपाट की ठंडी तासीर को विकास प्रतीक उद्योग और उसके खनन ने लील लिया है तो मैनपाट भला शिमला क्यों कहा जाता है। अनबूझ सवाल तो यह भी है कि कथित छत्तीसगढ़ के शिमला में कई गाँव या कि आश्रित गाँव ऐसे हैं जो बरसात के महिनों में पहुँचविहीन हो जाते हैं,कुछ गाँव के लिए पहुँचविहीनता का मसला केवल बरसात के मौसम तक सीमित नहीं होता है, ऐसे आलम में तब्दीली क्यों नहीं होती
यह गर्भवती महिला को ले जाते ग्रामीणों का समुह है। प्रसव पीड़ा के बीच झलगी में ढोकर ले जाते इस महिला को तीन किलोमीटर दूर तक ले जाना है। तीन किलोमीटर दूरी का यह सफ़र झलगी से ही तय होना है, और इस सफ़र में उफनती घूनघूट्टा नदी भी होती है जो कई बार आधा शरीर से ज्यादा डूबो लेती है।
इस इलाक़े को घूनघूट्टा नदी ने घेर रखा है। वही घूनघूट्टा नदी जिस पर बना विशालकाय बांध संभाग मुख्यालय अंबिकापुर की पानी आपूर्ति का सबसे विश्वसनीय ज़रिया है। घूनघूट्टा नदी से घिरे इस गाँव की सरकारी नक़्शे में पहचान मैनपाट विकासखंड से मिलती है, लेकिन बतौली विकासखंड के यह सबसे क़रीब गाँव है
कदनई के इस गाँव में ससीता नामक महिला को प्रसव पीड़ा हुई तो झलगी में बैठाकर उफान मारती घूनघूट्टा को पार करते हुए ग्रामीणों ने तीन किलोमीटर का सफ़र तय किया और फिर उसे वहाँ मौजुद महतारी एक्सप्रेस से बीस किलोमीटर दूर शांतिपारा अस्पताल पहुँचाया गया।
आज़ादी के सत्तर बरस बाद एक अदद पुल मयस्सर नहीं हो पाया। विधायकी की चौथी पारी खेल रहे मौजुदा सरकार में खाद्य मंत्री अमरजीत भगत इस इलाक़े के प्रतिनिधि हैं। इस मसले पर उनका कहना है –
“पहुँच विहीन गाँव है, इस साल बजट में नही जुड़वा पाए हैं, अगले बार यहाँ पुल बजट में जुड़ेगा और बनेगा”
खाद्य मंत्री अमरजीत भगत से सवाल हुआ कि चौथी पारी चल रही है इसके पहले कि तीन पारियों में क्यों नहीं बना तो मंत्री जी ने जवाब दिया
“हर बार माँग करते थे, सरकार अपनी नहीं थी तो माँग केवल माँग रह जाती थी.. अब बना लेंगे”