कवर्धादुर्ग

*इस्लाम की शिक्षाः*

*इस्लाम की शिक्षाः*

*कुरान शरीफ की पारा संख्या 5 में कहा गया है कि जिस मुल्क में रहते हो, उसके कायदे-कानून को मानो। वहाँ के हुक्मरानों की बात को मानो।* _*संक्रामक बीमारी पर हुजूर मुस्तफ़ा मुहम्मद सल्ललाहु अलैहि व सलल्लम (SAW) की हदीस में इस प्रकार की सलाहें दी गई हैं।*_

*1-कोरेनटाइन करें -*
हुजूर ने फरमाया है कि जिस शख्स को संक्रामक रोग है, उससे दूर रहने की हिदायत दी गई है। [शाही अल बुखारी वाल्यूम 07- 71- 608 ]

*2-सोशल डिस्टैंसिंग रखें -*
हुजूर ने फरमाया है कि जिस किसी को भी संक्रामक रोग है, उसे सेहतमंद लोगों से दूर रखने की हिदायत दी गई है। [अल बुखारी 6771 एवं अल मुस्लिम 2221]

*3-सफर पर पाबंदी -*
उन जगहों पर जाने से परहेज करें, जहाँ पर ये महामारी हो। और अगर आप उसी शहर में, या उसी जगह पर हों। तो उस जगह को छोड़कर बाहर न जाएं। [अल बुखारी (5739) एवं अल मुस्लिम (2219)]

*4-दूसरों को नुकसान न पहुंचाएं -*
हुजूर ने फरमाया है कि यदि आप संक्रामक रोग से पीड़ित हैं, तो आपका फर्ज है कि दूसरों तक इसे न पहुंचने दें। दूसरों को मुसीबत में न डालें। [सुनान इब्न मजहा (2340)]

*5-घर पर रहें -*
हुजूर ने फरमाया है कि जो स्वयं अपनी हिफाज़त के लिए घर पर रहते हैं, उनकी हिफ़ाज़त अल्लाहताला करता है। [मुसनद अहमद, शाही]

*6-घर ही मस्जिद -*
हुजूर ने फरमाया है कि ऐसी महामारी के वक्त आपका घर ही आपकी मस्जिद है। जो सवाब (पुण्य) मस्जिद में नमाज का है। ऐसे समय में वही सवाब घर में पढ़ी हुई नमाज का है। [अल तिरमज़ी(अल-सलाह, 291)]

*7-सब्र ही इलाज है -*
हुजूर ने फरमाया कि जब अल्लाह ताला इस किस्म की बीमारी भेजता है, तो उसका इलाज भी भेजता है। यानी वह आपके सब्र का इम्तेहान ले रहा है। अल बुखारी [(वाल्यूम 07, बुक 71, संख्या 582)]

*8-फेस मास्किंग -*
हुजूर को जब छींक या खांसी आती थी, तो वह खुद कपड़े से अपने मुँह को ढक लिया करते थे। [(अबू दाऊद, अल तिरमज़ी, बुक 43, हदीश 2969), शाही]

*9-हाथ धोना -*
हुजूर ने फरमाया कि अपने घर आते ही अपने हाथ धो लें। साफ-सफाई ही आधा ईमान है। ऐसे भी इस्लाम में पांचवक्ता नमाज फर्ज है। और नमाज से पहले वज़ू फर्ज है। [अल मुस्लिम (223)]

*10-होम कोरेंटाइन -*
हुजूर की सलाह है कि जिस शख्स को संक्रामक रोग है, और अगर वह घर रहकर ही सब्र के साथ इबादत करे, तो वह अल्लाह की रहमत से महरूम नहीं होगा। क्योंकि जिंदगी और मौत अल्लाह के हाथ है। [मुसनद अहमद, शाही, अल बुखारी(2829) एवं अल मुस्लिम(1914)]

जिस मज़हब की आसमानी किताब और उसके हुजूर पैगंबर मुस्तफ़ा मुहम्मद सल्लललाहु अलैहि व सल्लम (SAW) ने इन पाबंदियों एवं एहतियातों का जिक्र हजारों साल पहले बताया था, आज 21वीं शताब्दी में विज्ञान उन्हीं का पालन करने को कह रहा है। ऐसे में इस्लाम के मानने वालों का यह धर्म बनता है कि वे अपने मज़हब के बताए हुए रास्तों पर चलें एवं अपनी, समाज की एवं पूरे मुल्क के लोगों की हिफाज़त करें एवं सरकार के निर्देशों का हू-ब-हु पालन करें और जो बात नहीं मान रहे हैं तो वो मुसलमान नहीं हैं बस नाम ही मुसलमानों वाला है।. लेहाज़ा क़ौम को बदनाम मत होने दे,जोहला की क़़ौम न कहलवाये ।प्रशासन व सरकार को पूरा तआवुन करें, ???

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