कवर्धादुर्ग

संत शिरोमणि नामदेव जी महाराज की ८ नवम्बर को ७४९वीं जयंती पर विशेष महान समाज सुधारक संत नामदेव – अभिताब नामदेव

संत शिरोमणि नामदेव जी महाराज की ८ नवम्बर को ७४९वीं जयंती पर विशेष
महान समाज सुधारक संत नामदेव – अभिताब नामदेव

कवर्धा,भारत भूमि में समय समय पर अनेक संतों महापुरूषों का आर्विभाव हुआ है जिन्होने अपने अलौकिक गुणों व कार्यो से न केवल इस धरा धाम को पावन किया वरन भारतीय जन मानस में सदा सदा के लिये अपना स्थान बना लिया है और प्रेरणा श्रोत बने हुए है। बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध और तेरहवीं शताब्दी में भारत में संतों की एक महान परंपरा का उदय हुआ जिसमें ज्ञानदेव, सोापनदेव , निवृतिनाथ मुक्ताबाई गोरा, जोगा, बंका, नरहरि, खेचर, चोखा, मेला, सेनाबाई, सांवता नामदेव आदि संतो ने भक्ति ज्ञान की ओजस्वी धारा बहाई जिससे संपूर्ण मानव समाज पल्ल्वित हो रहा है।
इसी परंपरा में महाराष्ट्र के पंढरपुर धाम में शाके ११९२ प्रभाव नाम संवत्वसर कार्तिक शुक्ल एकादशी तदनुसार २६ अक्टूबर १२७० ईसवी रविवार को प्रात: काल दामासेठ की पत्नी गोणाबाई के यहां एक यशस्वी बालक ने जन्म लिया था। इस बालक को दो वर्ष की आयु से ही भगवान विटठ्ल से अत्यधिक प्रेम और लगाव था यह बाल प्रेम आगे और प्रगाढ़ होता गया और भगवान विटठ्ल की अन्नयतम भक्ति में परिवर्तित होकर बालक नामा अपने अलौकिक गुणो चमत्कारो से संत शिरोमणि नामदेव के नाम से जग प्रसिध्द हुआ। नामदेव जी के पूर्वज कुशक वंशी गौत्रीय देशस्थ क्षत्री थे। कन्नौज इनके आदि पुरूषों की जन्म भूमि थी जो पहिले गाधिपुर के नाम सेे प्रसिध्द थी। नामदेव के कुल में मूल पुरूष यदुसेठ हुये है जो कन्नौज से दक्षिण देश में आये और महाराष्ट्र प्रदेश में बस गये। वे जाति के छिंपी दर्जी थे। उनका उपनाम रेलेकर था और उनका धंधा कपड़ा बेचने का था। बहुत बाद में यह परिवार पंढरपुर में आकर बस गया था।
महाराष्ट्र में पूर्व में महाभक्त पुंडलीक हुये जिन्होने अपने माता पिता की सेवा भक्ति से साक्षात विष्णु भगवान के विटठ्ल रूप में दर्शन दिये और उन्हें पंढरपुर के एक देवालय में विराजमान कराया। इस प्रकार पंढरपुर एक पवित्र तीर्थ स्थान बन गया। भगवान विष्णु ने पुंडलीक को यह वरदान दिया था कि जो भी विटठ्ल विटठ्ल बार बार कहेगा और चंद्रभागा नदी में स्नान करेगा उसका उद्वार हो जायेगा। पंढरपुर के पूर्व की ओर की ओर पुण्य सलिला भीमा नदी बहती है। चंद्राकर होने से इसे चंद्रभागा कहते है। इसके तट पर भक्त पुंडलीक का मंदिर है। इसके अनुसार पंढरपुर यात्रा के तीन मुुख्य महात्मय बताये गये है। प्रथम चंद्रभागा में स्थान द्वितीय संत पुंडलीक दर्शन और तृतीय भगवान विटठ्ल रखु भाई के दर्शन करना। महाराष्ट्र में रूकमणी जी की मानता है उन्हें ही रखु भाई कहते है।
संत नामदेव जी का संपूर्ण जीवन भगवान विटठ्ल की अनन्यतम भक्ति और अलौकिक चमत्कारों से परिपूर्ण है। वे एक महान सिध्दता भगवान विटठ्ल की अगाध भक्ति और प्रेम था जिसके वश होकर भगवान स्वयं चमत्कार किया करते थे। समस्त चराचर में ब्रम्ह समान रूप से विद्यमान है ऐसा मानते हुए वे प्रसंग है संत नामदेव और उनके गुरूभाई त्रिलोचन दोनो कुटियो मेें थे। उन्होने रोटियों लेकर पकाई। इतने में एक स्वान आया और रोटियों लेकर भाग गया। नामदेव जी घी की कटोरी लिये उसके पीछे – पीछे दौड़े और कहने लगे।
रूखड़ी न खायौ स्वामी रूखड़ी ना खायौ।
हाथ हमारे घिरत कटोरी अपना बांटा ले जाइयों।।
कुकर ते ठाकुर हो प्रकट नामदेव दर्शन पाया। इसी प्रकार अग्नि, जल, वृक्ष, पत्थर में भगवान विटठ्ल के दर्शन करने की गाथाएँ भरी पढ़ी है। औढय़ानाग नाथ मंदिर का द्वार घूम जाना, सूखी घास को हरा करना, राजा रामराय के पुत्र को जीवनदान, कमलाकार ब्राम्हण के पुत्र को जीवनदान, गोरा कुम्हार को कटे हाथ मिलना, मृत गाय जीवित करना आदि संत नामदेव की महाराज के जीवन चरित्र की अलौकिक चमत्कारिक घटनाएं है। संत नामदेव एक सच्चे समाज सुधारक भी थे वे जंाति पंाति छुआ छुत में विश्वास नहीं करते थे। उनका कहना था। कहा करौ जाति कहा करौ पाति राम का नाम को जपउ दिन रातीं।
हरिजन कन्या जनाबाई आजीवन इनके परिवार के साथ रही और संत समागम से वह भी संत बन गई थी। संत चोखा मेला छेड़ जाति के थे जो महाराष्ट्र में इनके प्रधान शिष्य थे। संत नामदेव जी का जन्म यद्यपि महाराष्ट्र में हुआ था उनका कार्यकाल में संत मंडली सहित देश के विभिन्न क्षेत्रोंं प्रदेशो की अनेकों बार यात्राएं की थी और वहां को प्रचलित जनवाणी में भागवत धर्म किा प्रचार प्रसार किया और अपने अभागों कीर्तनो भजनों के गायनों द्वारा एकता प्रेम का बोध कराया। यही एक प्रदेश के लोगो को दूसरे प्रदेश के लोगो को मिलाने की एक कड़ी थी। इस नाते संत नामदेव की राष्ट्रीय एकता के महान पोषक एक राष्ट्र संत थे। दीपावली की अमावस्या को प्रात: काल स्थान करके दान पुन्य करने की प्रथा है। नामदेव जी ने दीपावली की अमावस्या को भगवान विटठ्ल से प्रात: स्नान करने हेंतु घर चलने का आग्रह किया। इस पर भगवान ने कहा नामदेव यह प्रात: काल का समय है पूजा आरती होगी पुजारी तथा सभी भक्त मंडली आयेगी और मेरे सिहांसन पर ना होने से हलचल मच जायेगी। नामदेव को उनकी जगह सिहांसन पर खड़े रहने को कहा और समझाया कि इस बीच आरती के समय भक्त लोग आवेंगें। भीड़ भाड़ होगी। दर्शन करते समय पैर छुयेगे तू हिलना डुलना नहीं। स्नान कराते समय दूध, दही, घृत, मधु से अभिषेक करने के बाद जल स्नान करावेगे और माखन मिश्री नैवेध चढ़ायेगे लेकिन तू यह सब भोग आदि खाना नहीं। यदि थोड़ा भी डुला या माखन मिश्री खाई तो लोग तुझे पहिचान जायेगें और तेरी पिटाई करेगें। तू बिल्कुल सचेत रहकर नासिका के अग्रभाग पर नजर रखना। भगवान विटठ्ल की आज्ञा से नामदेव जी सिहासन पर खड़े रहे। उधर विटठ्ल भगवान नामदेव के घर स्नान करने चले गये। नित्य नियमानुसार मंदिर में नामदेव जी को विटठ्ल समझ पंचामृत स्नान धूप, दीप, आरती हुई और माखन मिश्री के भोग लगाया गया। नामदेव जी विटठ्ल भगवान की कही हुई बात भुल गये और धीरे धीरे माखन मिश्री खाने लगे। यह चमत्कार लोगो को अद्भूत लगा तब सब लोगो ने पास जाकर देखा और पहिचान गये कि यह नामदेव है। बाद में विटठ्ल भगवान आये और मंदिर में किसी को ना देख नामदेव जी को सिंहासन से उतर आने को कहा। नामदेव जी जब नहीं उतरे तब भगवान ने समझाकर उतारा और आप सिंहासन पर विराजमान हो गये। इसका तात्पर्य नामे नारायण नाहिं भेद है।
संत नामदेव जी महान ईश्वर भक्त थे। वे चारों युगों में प्रगट होकर विविध स्वरूपो में भगवान के दर्शन कर परमधाम पाया। चारो युगों मेे संत नामदेव महाराज भगवान से विलग नही हुये। उनके अवतारों की संक्षिप्त कथा इस प्रकार है। प्रथम सनत अवतार है लीन्हों हंस रूप में प्रभु को चीन्हों नामदेव की के जन्म के समय उन्हें सनत कुमार का अवतार माना गया। इस विषय में उन्होनें स्वयं कृष्णा भगवान से वर्णन किया है।
सुनहू भयों द्वितीय अवतारा रामनाम प्रहलाद उचरा।
सतयुग में प्रहलाद भगत क रूप में आये पिता।।
हिरण्यकश्यप का अपना नाम जपाने पूजा कराने का विरोध किया भगवान ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया। रामनाम का प्रचार पूजा यज्ञ आदि जगत में होने लगे। भगत प्रहलाद ने अमर पद धाम पाया।
तृतीय जन्म बालि गृह आये अंगद त्रेता मांहि कहाये
राम रूप के दर्शन पाये। रावणादि के मान घटाये
त्रेता युग मे बलि पुत्र अंगद बनकर आये। भगवान
राम के सेवक बनकर सेवा की और चरणों में स्थान पाया।
द्वापर में उधव कहलाये , श्रीकृष्ण ने सखा बनायें
द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण के सखा उधव बनकर आये।
कलि में नाम नामदेव पाये, दर्शन विटठ्ल के नित भाये।
चहूं दिश जाए चरित्र दिखाए, घुमो मंद और गौ जिलाये
महिमा यही जन्म आदि कीं
कलियुग में सत रूप में आये भगवान विटठ्ल की अगाध भक्ति प्रेम से अलौकिक चमत्कार किये। भगवान भक्ति सदाचार ऐकता समता के अमर संदेश दिये संत शिरोमणि नामदेव कहलाये और कलि के नाम नामदेव पाये जग विख्यात है। संत नामदेव जी एक ऐसे सदगृहस्य संत हुये है जो अपने जीवन के ८० वर्षो तक निरंतर भगवान विटठ्ल की भक्ति प्रेम में लीन रहें और भागवत धर्म का प्रचार प्रसार किया। अंत में भगवान विटठ्ल की आज्ञा से आषाढ़ वदी त्रयोदशी शनिवार शालिवाहन शक १२७२ अर्था ३ जुलाई १३५० ई. को पंढरपुर में भगवान विटठ्ल के महाद्वार की पायरी के नीचे संत जी महाराज सपरिवार समाधिस्थ हुई थे।
कलो देवनांम्नैव सवार्थ सिध्दि: कृतार्थ: कलौ देवनांम्नैव लोका:।
इतीद प्रसिध्दि कृत योजन लोके, समाधि स्थित भजे नामदेवम।।
भगत त्रिलोचन और संत नामदेव जी दोनो गुरू भाई थे। एक समय त्रिलोचन ने नामदेव जी से पूछा कि आप भगवद भक्ति तथा दर्जी छोपी का काम दोनो कैसे चलाते है। इसका उत्तर नामदेव जी के इस पद में निहित है।
आनीले कागदु काटीले गूडी, अका सामधे भरमी अले।
पंच जना सिउ बात बताउआ चीतु सु डोरी राखी अले।।
मनु राम नामा बेधीअले जैसे कनिक कला चितु मांडीअले।
आनीले कुंभु भराइले उदक राजकुमारी पुुरदरीए।।
हसत विनोद बीचार करती है । चीतुसु गागरि राखिअले।
मंदरू एकु दुआर दस जाके, गउचरावन छाडीअले।
कहत नामदेउ सुनहू तिलोचन बालकु पालन पडडीअले।।
अंतरि बाहरि काज विरूधी, चीतुसु बारिक सखी अले।
संत नामदेव महाराज अनेको उपमाओ द्वारा कहते हैं कि वे संसार का कार्य करते हुये भी उनका ध्यान परमेश्वर की ओर लगा रहता हैं। जैसे पतंग को आकाश में उडानें वाला पांच जनो से अर्थात मित्रों से गूढार्थ पांच इंद्रियों द्वारा संंंसार का कार्य करते हुए भी बातचीत करता है, परन्तु उसका ध्यान पतंग की डोर में रहता है। इसी प्रकार सुनार का चित अपने काम में रहता है। भले वह ग्राहक से बात करता रहे गांव का कन्याएं गागर में पानी भरकर लाती हैं और आपस में बातचीत हंसी मजाक भी करती है पर उनका ध्यान गागर में रहता है। एक दस द्वार के घर से गायें बाहर चरने कोदस मील तक भी जाती है। परंतु उनका ध्यान हमेशा अपने बछडों की ओर रहता है। यहा आशय नरदेही से है और गायों से आशय इंद्रियो के द्वार अनुभव से है। जैसे मां घर का सब काम काज करती रहती है पर उसका ध्यान पालने के बच्चे की तरफ रहता है। संत नामदेव जी महाराज कहते है कि हे त्रिलोचन इसी प्रकार मै दुनिया के सब कार्य करता हूं पर मेरा ध्यान हमेशा परमेश्वर की ओर ही रहता है।

अभिताब नामदेव
जिलाध्यक्ष कबीरधाम
7580804100/9425569117

Related Articles

Back to top button